प्रिय सीमा आजाद,
भारतीय शासकों की निर्ममता की एक और शिकार होने के नाते हमारी हार्दिक संवेदनाएं आपके साथ हैं। मैं आपको यह पत्र जिस न्यायालय ने आपको दंडित किया है उसकी भर्त्सना करने या उस पर अपना कोई निर्णय देने के लिए नहीं कर रहा हूं क्योंकि ऐसा करना अपनी शक्ति बेजा करने के अलावा उन ताकतों, वे जो भी हों, के जाल में फंसना है। भारत के धूर्त शासक वर्ग के शस्त्रागार में दो तरह के कानून है। एक हैं देश द्रोहियों को दंडित करने के लिए, जिसमें भ्रष्ट राजनीतिक, बड़ा पूंजीपति और भ्रष्ट नौकरशाह शामिल हैं जबकि यथार्थ में यह उन्हें अभेद्य ढाल मुहैया करवाने के लिए हैं। और दूसरे अन्य लोगों के लिए हैं। जबकि पहलेवाले उन्हें प्रभावशाली तरीके से बचाने के लिए हैं दूसरेवाले जनता को फंसाने के लिए हैं जिनसे छूट पाना लगभग असंभव है। जबकि वे मजे मार रहे हैं सामान्य जनों के ठठ्ठ के ठठ्ठ को उनके निरपराध होने को नजरंदाज कर बिजली की गति से जेलों में बंद किया जा रहा है। देश के उन दुश्मनों के नामों को जिन्होंने खरबों रुपए चोरी कर के विदेशी बैंकों में जमा कर रखें हैं, गुप्त रखने के कानून हैं और ऐसे किसी कानून का पूरी ताकत से विरोध हो रहा है जो कि देश के सत्ताधारी वर्ग को नुकसान पहुंचाता हो। यह परिघटना नई नहीं है, केवल उनके हथियार और लक्ष्य बदल रहे हैं। उन्होंने भारत के गणतंत्र होने के कुछ ही सप्ताह बाद 1950 में पीडीए (प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट) बनाया, 1971 में मीसा (मेंटेनेंस आफ इंटरनल सेक्युरिटी) बनाया, 1985 में टाडा और 2001 में पोटा बनाया। इसके अलावा 1967 में यूएपीए तथा इनके कई भाई-भतीजे बनाए गए। सन् 1947 से अब तक कई लाख लोग इसके शिकार हुए जिस पर शासकों को कोई अफसोस नहीं हुआ। आपात काल के दौरान 35 हजार लोगों को मीसा में बंद किया गया। 76 हजार लोगों सारे देश में गुजरात समेत, जहां 1980 तक आतंकवाद का कोई नामोनिशान नहीं था, को टाडा में पकड़ा गया। इसी तरह अनगिनत निरपराध लोगों पर बिना किसी न्यायिक मदद या अड़चन के पोटा का कहर बरपा। जयप्रकाश नारायण और हजारों अन्य लोग फासिस्ट थे क्योंकि इंदिरा गांधी यह कह रही थीं। हजारों आतंकवादी हो गए थे क्योंकि शासकों ने उन पर यह तोहमत लगा दी थी टाडा के अंतर्गत, एनडीए के तमिलनाडु के सांसद वायको, इसलिए आतंकवादी हो गए क्योंकि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री ऐसा कह रहीं थीं। देश के कानूनविहीन कानून में यह शासक लोग ही हैं जो निर्धारित करते हैं कि हम क्या हैं और हमारे साथ क्या किया जाना चाहिए। आपात काल के दौरान इंदिरा गांधी ने यह फैसला किया कि भारत की जनता को जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार नहीं मिलना चाहिए, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा हां ठीक है। इसलिए आप भी उतनी ही माओवादी हैं जितने कि जेपी फासिस्ट और वायको आतंकवादी थे।
हमारा लक्ष्य नियमों को बदलना है पर हम में इतनी ताकत नहीं है कि हम उन्हें झुकने के लिए मजबूर कर सकें, लेकिन हम में एक धर्मयोद्धा-सी हिम्मत है और हम बिना थके लगातार शासकों के पापों को सामने लाते जाएंगे और लोगों से इस बात के लिए आग्रह करते जाएंगे
कि वे अपनी जिंदगी और स्वतंत्रता के लिए अंत तक लड़ते रहें। यह हमारा लक्ष्य है, हम इसे पाने के लिए सतत और अनथक प्रयास करते रहेंगे।
सस्नेह
प्रभाकर सिन्हा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, पीयूसीएल 14.06.12
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